नारायण नागबली पूजा त्र्यंबकेश्वर
नारायण नागबली पूजा त्र्यंबकेश्वर में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य पितृ दोष और अकाल मृत्यु दोष से मुक्ति दिलाना है। यह पूजा उन लोगों के लिए की जाती है जिनकी अकाल मृत्यु हुई होती है या जिनके परिवार में लगातार अनहोनी घटनाएं घट रही हों। इस पूजा के माध्यम से, नाग (सर्प) और पूर्वजों को संतुष्ट किया जाता है ताकि उनके आशीर्वाद से सुख-समृद्धि प्राप्त हो सके।
नारायण बली पूजा भी त्र्यंबकेश्वर में की जाती है और इसका उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करना और पितृ दोष से मुक्ति दिलाना है। यह पूजा विशेष रूप से उन परिवारों के लिए की जाती है जो अपने पूर्वजों के श्राप या दोष से प्रभावित होते हैं।
यह पूजा त्र्यंबकेश्वर मंदिर में विद्वान पुरोहितों द्वारा संपन्न की जाती है और इसके लिए उचित मुहूर्त और तिथियों का ध्यान रखा जाता है। त्र्यंबकेश्वर को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है, जहाँ यह पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
नारायण नागबली पूजा क्या है ?
नारायण नागबली पूजा एक पवित्र और महत्वपूर्ण विधि है, जिसका उपयोग पितृ दोष को दूर करने और अकाल मृत्यु से उत्पन्न समस्याओं को हल करने के लिए किया जाता है। इस पूजा का विशेष उल्लेख गरुड़ पुराण में किया गया है। सर्प हत्या और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यह विधि अत्यधिक आवश्यक मानी जाती है। यह पूजा संपूर्ण परिवार के लिए एक सुरक्षा कवच का निर्माण करती है और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में मदद करती है।
नारायण नागबली पूजा तीन दिनों तक चलने वाली एक महत्वपूर्ण हिंदू विधि है, जो केवल नाशिक जिले के त्र्यंबकेश्वर में की जाती है। इसमें दो पूजा शामिल होती हैं—नारायण बली और नाग बली। नारायण बली पूजा उन आत्माओं की मुक्ति और शांति के लिए की जाती है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई है, जबकि नाग बली पूजा सर्प (विशेष रूप से नाग) की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए की जाती है।
शिव पुराण के अध्याय 26 में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और गंगा नदी के धरती पर आगमन का विस्तार से वर्णन किया गया है। त्र्यंबकेश्वर में पूजा-अर्चना करने से मिलने वाले फलों का भी इसमें उल्लेख है। त्र्यंबकेश्वर में की गई पूजा-अनुष्ठान सदैव सफल होते हैं, जिसका भक्तों को हमेशा अनुभव होता है। इस पुण्य स्थल पर पूजा करने से पापों से मुक्ति तो मिलती ही है, साथ ही पुण्य की प्राप्ति भी होती है।
नारायण नागबली पूजा क्यों करनी चाहिए?
नारायण नागबली पूजा तब की जाती है जब किसी व्यक्ति ने सर्प की हत्या की हो, उसे मारने में सहायता की हो, या सर्प की हत्या होते हुए देख उसमें आनंद लिया हो। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति पर सर्प हत्या का पाप लग जाता है, जिससे नाग दोष उत्पन्न होता है। इस पाप के परिणामस्वरूप जीवन में कठिनाइयाँ और दुख आने लगते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए नारायण नागबली पूजा की जाती है।
इसके अलावा, यदि परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज की अकाल मृत्यु (अनैसर्गिक मृत्यू) हुई हो, तो उनकी आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी यह पूजा की जाती है। अकाल मृत्यु के 90 प्रकार होते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:
- दुर्घटना से मृत्यु
- आत्महत्या से मृत्यु
- घर से गायब होकर कभी न लौटना
- संतान न होने के बाद मृत्यु
- अत्यधिक धन लोभ से मृत्यु
इन सभी कारणों से परिवार की कुंडली में पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है। इसे दूर करने के लिए नारायण नागबली पूजा की जाती है।
इसके साथ ही, यदि किसी की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति के कारण पितृ दोष बना हो, तो ज्योतिषी उस व्यक्ति को नारायण नागबली पूजा करने की सलाह देते हैं। संतान प्राप्ति और परिवार की उन्नति के लिए भी यह पूजा की जाती है।
नारायण बली पूजा
नारायण बली का मतलब है, जब परिवार के किसी सदस्य की अचानक दुर्घटना या अप्राकृतिक तरीके से मृत्यु हो जाती है। ऐसी आत्माओं को मोक्ष नहीं मिलता क्योंकि उनकी कुछ इच्छाएँ या अपेक्षाएँ अधूरी रह जाती हैं। ऐसे समय में उस आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सके, इसके लिए नारायण बली पूजा की जाती है।
जब व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, जैसे कि दुर्घटना या आत्महत्या, और उनके अंतिम संस्कार या श्राद्ध विधि सही तरीके से संपन्न नहीं हुए हों, तो उस आत्मा को शांति नहीं मिलती और वह सूक्ष्म शरीर के रूप में भटकती रहती है। ऐसी आत्मा को मोक्ष प्रदान करने के लिए शास्त्रों में नारायण बली करने का विधान है।
नारायण बली पूजा को सद्गति नारायण बली पूजा भी कहा जाता है। सद्गति का अर्थ है आत्मा की मुक्ति। गरुड़ पुराण के 40वें अध्याय में सद्गति नारायण बली पूजा का वर्णन किया गया है।
यह पूजा एक महत्वपूर्ण वैदिक अनुष्ठान है, जिसका उल्लेख गरुड़ पुराण में मिलता है। इस पूजा के द्वारा परिवार के किसी सदस्य की अप्राकृतिक मृत्यु के दोष को दूर किया जाता है और उसकी आत्मा को शांति प्राप्त कराने के लिए यह विधि अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है। इसमें माना जाता है कि मृतक की असंतुष्ट आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है और उसकी मुक्ति के लिए पूजा की जाती है। अप्राकृतिक मृत्यु के कारण कई प्रकार के हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- भूख या अकाल से मृत्यु
- जंगली जानवरों के हमले से मृत्यु
- दुर्घटना से मृत्यु (वाहन, गिरना, आदि)
- आग से जलने या बिजली के झटके से मृत्यु
- शाप या किसी गंभीर कारण से अचानक मृत्यु
- महामारी या गंभीर बीमारी से अकाल मृत्यु
- आत्महत्या से मृत्यु
- ऊँचाई से गिरकर (पहाड़, पेड़, आदि) मृत्यु
- पानी में डूबने से मृत्यु
- हत्या या खून से मृत्यु
- सांप के काटने से मृत्यु
- बिजली गिरने से मृत्यु
इस विधि का मुख्य उद्देश्य मृतक आत्मा की असंतुष्ट स्थिति का समाधान करना और उसे मोक्ष प्रदान करना है। यदि मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार सही तरीके से नहीं हुआ हो या आत्मा को किसी कारणवश शांति नहीं मिली हो, तो नारायण बली पूजा के द्वारा उस आत्मा का उद्धार होता है और परिवार से पितृ दोष का संकट दूर हो जाता है।
नारायण नागबली पूजा के शुभ मुहूर्त
पितृ पक्ष के 15 दिनों की अवधि, जो हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर) में आती है, में नारायण नागबली पूजा की जाती है। इस दौरान पूर्वजों के लिए विधि और संस्कार करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। यह समय अत्यधिक शुभ माना जाता है। पितृ पक्ष की तिथियाँ हर वर्ष चंद्र कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती हैं। वर्ष 2024 में पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होगा और 1 अक्टूबर को समाप्त होगा।
यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि नारायण नागबली पूजा किसी भी दिन की जा सकती है, बस एकादशी और अमावस्या को छोड़कर, क्योंकि ये दिन अशुभ माने जाते हैं।
2024 में नारायण नागबली पूजा के शुभ मुहूर्त:
दिसंबर – 2023: 2, 5, 9, 12, 16, 22, 25, 29
जनवरी – 2024: 04, 08, 13, 18, 21, 23, 25, 31
फरवरी – 2024: 01, 04, 06, 15, 18, 22, 27
मार्च – 2024: 01, 03, 06, 08, 13, 16, 20, 26, 30
अप्रैल – 2024: 02, 04, 09, 12, 16, 20, 22, 26, 29
मई – 2024: 01, 07, 10, 14, 17, 19, 24, 27, 29
जून – 2024: 03, 06, 10, 13, 16, 20, 23, 25, 30
जुलाई – 2024: 03, 07, 11, 14, 17, 20, 22, 28, 31
अगस्त – 2024: 03, 10, 13, 15, 20, 23, 25, 30 (पितृ पक्ष)
सितंबर – 2024: 12, 18, 21, 24, 28, 30
अक्टूबर – 2024: 03, 07, 09, 14, 17, 21, 24, 29
नवंबर – 2024: 03, 07, 09, 14, 17, 21, 29
दिसंबर – 2024: 01, 04, 06, 12, 18, 21, 26, 31
नारायण नागबली पूजा न करने से आने वाली समस्याएँ
- संतान न होना या बार-बार गर्भपात होना।
- परिवार में लगातार कलह और झगड़े होना।
- अकाल मृत्यु, जैसे आत्महत्या, हत्या, भ्रूणहत्या, या दुर्घटना।
- सपनों में बार-बार सांप दिखना या अचानक कोई अनहोनी घटना घटित होना।
- घर की महिलाओं में खिन्नता, भय, असुरक्षा और अस्थिरता महसूस होना।
- घर से किसी सदस्य का भाग जाना।
- व्यापार में नुकसान होना और कर्ज़ में डूब जाना, जिससे कर्ज़ वसूली के लिए लोगों का घर में आना।
- परिवार में संपत्ति या ज़मीन के मामलों में विवाद और कोर्ट के चक्कर लगना।
- नौकरी में असफलता मिलना या काम छूट जाना।
- नौकरी में प्रमोशन न मिलना।
- नौकरी या व्यापार में ध्यान न लगना।
- लगातार बीमारियों का सामना करना।
- घर के छोटे बच्चों को बार-बार समस्याएं होना, जैसे कि ठीक से भोजन न करना, नींद में चिल्लाना, ठीक से नींद न आना, और पढ़ाई में ध्यान न लगना।
- घर में हमेशा अशांति और तनावपूर्ण माहौल बने रहना।
- घर के किसी सदस्य का गलत राह पर चल पड़ना, जैसे कि चोरी, नशा, अनैतिक संबंध या दूसरों की निंदा करना।
- झगड़ों के कारण तलाक होना या तय हुए विवाह का टूट जाना।
नारायण नागबली पूजा कब करनी चाहिए?
काम्य कर्म का इच्छित फल प्राप्त करने के लिए नारायण नागबली पूजा विधि शुभ मुहूर्त पर करना आवश्यक है। जब ग्रह बृहस्पति और ग्रह शुक्र “पौष” महीने में स्थापित होते हैं, तो उसे चंद्र पंचांग के अनुसार अतिरिक्त मास के रूप में जाना जाता है। यदि दिन की शुरुआत 22वें चंद्र स्थान से होती है, तो उस दिन संतान प्राप्ति के लिए नारायण नागबली पूजा करना उचित माना जाता है।
यह भी कहा जाता है कि चंद्र पखवाड़े के 5वें और 11वें दिन नारायण नागबली पूजा करना सबसे उपयुक्त होता है। इस पूजा को हस्त नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, या आश्लेषा नक्षत्र में करना अच्छा माना जाता है। इसके अलावा, अन्य नक्षत्र जैसे मृग, अर्द्रा, और स्वाति में भी यह विधि की जा सकती है। रविवार, सोमवार और गुरुवार के दिन इस पूजा को करना विशेष रूप से उचित माना जाता है।
नारायण नागबली पूजा कौन कर सकते हैं?
शास्त्रों के अनुसार, नारायण नागबली पूजा पुरुष अकेले कर सकता है, लेकिन महिला अकेले इस पूजा को नहीं कर सकती। परिवार के उन्नति के लिए विधुर व्यक्ति भी नारायण नागबली पूजा कर सकते हैं। संतान प्राप्ति के उद्देश्य से दंपति भी यह पूजा कर सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को (सात महीने की गर्भावस्था तक) इस पूजा की अनुमति होती है।
शादी जैसे पवित्र कार्य के बाद हिंदुओं को एक वर्ष तक यह पूजा नहीं करनी चाहिए; लेकिन अन्य किसी भी पवित्र कार्य के बाद यह विधि की जा सकती है। यदि माता-पिता का निधन हो गया हो, तो मृत्यु के एक वर्ष बाद यह पूजा की जा सकती है।
नारायण नागबली पूजा विधि
नारायण नागबली पूजा तीन दिनों में पूरी होती है, जिसमें निम्नलिखित क्रम से विधि संपन्न की जाती है:
पहला दिन:
- सबसे पहले, कुशावर्त तीर्थ पर पवित्र स्नान कर नए वस्त्र धारण करें। पुरुष धोती और महिलाएं साड़ी पहनें।
- विष्णु पूजन और विष्णु तर्पण किया जाता है।
- गुरुजी पंचदेवताओं की प्रतिमाएं—ब्रह्मदेव (चांदी की प्रतिमा), विष्णुदेव (सोने की प्रतिमा), शंकरदेव (तांबे की प्रतिमा), यमराज (लोहे की प्रतिमा) और प्रेत (सीसे की प्रतिमा)—पांच कलशों पर स्थापित कर पूजन करते हैं।
- इसके बाद, विधि-विधान के अनुसार हवन किया जाता है।
- दक्षिण की ओर मुख करके 16 पिंड का श्राद्ध किया जाता है।
- इसके बाद काकबली (कौवों को अन्न अर्पण) किया जाता है।
- फिर पालाश विधि की जाती है, जिसमें मनुष्य की आकृति के पुतले का पूजन कर उस पर अंतिम संस्कार किया जाता है। इसके बाद उस पुतले के नाम पर दशक्रिया विधि की जाती है।
दूसरा दिन:
- महिकोधिष्ठ श्राद्ध, सपिंडी श्राद्ध और नागबली विधि की जाती है।
तीसरा दिन:
- पूजन के तीसरे दिन श्री गणेश की उपासना और पूजन कर, सभी नकारात्मकता को दूर किया जाता है।
- इस दिन सोने से निर्मित नाग की पूजा कर उसे गुरुजी को समर्पित किया जाता है।
- इस प्रकार तीसरे दिन पूजा संपन्न होती है।
नारायण नागबली पूजन के लाभ
- उत्तम स्वास्थ्य और सफलता प्राप्त होती है।
- वंशजों पर लगे श्राप से मुक्ति मिलती है।
- पितृ दोष के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
- व्यापार में सफलता मिलती है।
- दांपत्य जीवन में संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- बुरे सपनों, जैसे सांप के काटने से मृत्यु होने जैसी घटनाओं से मुक्ति मिलती है।